जबलपुर, मध्य प्रदेश ।
मध्य प्रदेश के भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के राज में आरक्षण में गड़बड़ियां पैदा कर आये दिन ओबीसी को प्रतिनिधित्व से दूर रखा जा रहा है। हर भर्ती में ओबीसी के साथ बेईमानी होते आ रही है। इसकी एक बानगी उस वक्त आई जब एनएचएम में बहाली के क्रम में 50% से अधिक की आबादी वाले ओबीसी को मात्र 6.2% आरक्षण दिया गया वहीं 10% की आबादी वाले ईडब्ल्यूएस को 22.8% का आरक्षण लाभ दिया गया।
मप्र हाईकोर्ट ने एनएचएम के विभिन्न पदों पर हुई भर्तियों में आरक्षण का अक्षरश: पालन नहीं किये जाने का आरोप लगाने वाले मामले को गंभीरता से लिया है। चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक व जस्टिस एके श्रीवास्तव की युगलपीठ ने उक्त भर्तियों पर लगी याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रखे जाने के आदेश दिये हैं। साथ ही अनावेदकों को नोटिस जारी कर 16 अगस्त तक जवाब पेश करने के निर्देश दिये हैं। विस्तृत आदेश की फिलहाल प्रतीक्षा है।
इस केस को मध्यप्रदेश के दमोह निवासी गजेन्द्र यादव व सागर निवासी अजय सिंह, योगेन्द्र सिंह गुर्जर की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि एनएचएम में हुई करीब पांच हजार पदों पर भर्तियों में जमकर घालमेल हुआ है। आवेदकों ने बताया कि उक्त भर्ती प्रकिया में आरक्षण का पालन नहीं किया गया है। उक्त भर्तियों में जहां ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण लाभ मिलना चाहिए था उसकी जगह सिर्फ 6.6 प्रतिशत आरक्षण और ईडब्ल्यूएस को जहां 10 फीसदी का आरक्षण लाभ मिलना चाहिए था उसके स्थान पर 22.8 फीसदी आरक्षण दिया गया है, जो कि पूरी तरह से अवैधानिक है।
सुनवाई के दौरान अधिवक्ता रामेश्वर पी सिंह ने तर्क दिया कि गलत अभिमत के कारण ओबीसी का 13 फीसदी आरक्षण होल्ड किया गया है। जबकि ईडब्ल्यूएस में नियुक्तियां निर्णय के अधीन रखी गई हैं। उक्त स्थिति ओबीसी में भी लागू होनी थी, लेकिन सरकार ने स्वयं ही 13 फीसदी आरक्षण को होल्ड किये जाने का आवेदन पेश किया था। आरोप है कि व्यापक पैमाने पर भेदभाव कर आरक्षण नियमों सहित भर्ती नियमों को मनमाने रूप से लागू किया गया है।
इस मामले में प्रमुख सचिव लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, नेशनल हेल्थ मिशन के डायरेक्टर, नेशनल कमीशन बैकवर्ड क्लास व एनएचएम की डायरेक्टर छवि भारद्धाज को पक्षकार बनाया गया है। मामले की प्रारंभिक सुनवाई के बाद न्यायालय ने एनएचएम की समस्त नियुक्तियों को याचिका के निर्णय के अधीन रखने के आदेश देते हुए अनावेदकों को जवाब पेश करने का आदेश जारी किया है. इस मामले में अधिवक्ता विनायक शाह ने भी पक्ष रखा।
मध्यप्रदेश में हालांकि सरकार ने ही हाईकोर्ट में जवाब देते हुए ओबीसी की आबादी 50% से अधिक बताई थी और अब सरकार ही आरक्षण नियमों से पीछे हट रही है। अदालत में मामले की आड़ लेकर ओबीसी के साथ अन्याय कर रही है। ओबीसी प्रतिनिधित्व के मुकाबले ईडब्ल्यूएस को तय कोटे से दो गुना से भी अधिक सीट देना कहीं ना कहीं धांधली में बड़े अधिकारियों की मिलीभगत को दर्शाता है।