औरंगाबाद, बिहार।
मृत्यु के पश्चात पुत्र द्वारा मुक्ति देने की वर्षों पुरानी धारणा के विपरीत नातिन ने नाना को मुखाग्नि देकर इस परंपरा को तोड़ दिया है। जिले के अम्बा प्रखंड के देव रोड डुमरा निवासी रामबिलास सिंह की मृत्यु पर उनकी नातिन ने मुखाग्नि दी।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद बिहार प्रदेश सह मंत्री व सच्चिदानन्द सिंह कॉलेज के छात्र संघ के अध्यक्ष आशिका सिंह ने अपने नाना के पुत्र नहीं होने की कमी को पूरा किया है। उन्होंने सामाजिक रूढ़िवादिता को तोड़ते हुए संतान होने के फर्ज को निभाया। अम्बा थाना के डुमरा गांव निवासी और जमींदार रामबिलास सिंह का पिछले दिनों निधन हो गया था। उनका कोई पुत्र नहीं था। लेकिन उन्होंने अपनी पुत्रियों को पुत्रवत ही शिक्षा दीक्षा दी थी। उन्होंने कई सामाजिक कार्य किये थे।
उनकी नातिन आशिका सिंह ने बताया कि वे जमीन दान देकर गरीबों को बसाने का कार्य भी किए थे। सामाजिक कार्यों या साधनहीन लोगों के शादी ब्याह में वे आर्थिक रूप से मदद करते रहते थे।
बेटियों की शादी के बाद घर गृहस्थी में लग जाने के बाद एक नातिन आशिका सिंह को उन्होंने अपने पास रखकर पढ़ाया लिखाया। वे चाहते थे कि आशिका सिंह का कन्यादान करें।

लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था। और आज।आशिका उन्हें मुखाग्नि देकर विदा कर रही है। ना सिर्फ मुखाग्नि दी बल्कि अर्थी को कंधा भी दिया और पूरे कर्म कांड भी कर रही हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि भले ही आशिका उनकी नातिन थी लेकिन सही मायनों में किसी पुत्र से ज्यादा जिम्मेवारी निभा रही थी। अंतिम समय में भी आशिका ने यह साबित कर दिया कि लड़का और लड़की में कोई अंतर नहीं होता। संतान सिर्फ संतान होती है।