औरंगाबाद, बिहार।
देखें वीडियो-
भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन के जन्मोत्सव पर मनाए जाने वाले शिक्षक दिवस के अवसर पर शिक्षकों को सम्मानित किया गया। यह कार्यक्रम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के द्वारा औरंगाबाद शहर के सच्चिदानन्द सिन्हा कॉलेज परिसर के सभागार में आयोजित किया गया। विद्यार्थी परिषद द्वारा आयोजित शिक्षक सम्मान समारोह में महाविद्यालय के प्राचार्य, सह-प्राचार्य, प्राध्यापकों सहित कॉलेज के सभी कर्मचारियों तथा सफाईकर्मियों को भी सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर सर्वप्रथम अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्वलन एवं डॉ राधाकृष्णन के प्रतिमा पर पुष्पांजलि कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।


मुख्य अतिथि में कॉलेज के प्राचार्य डॉ वेदप्रकाश चतुर्वेदी, उप प्राचार्य मोहम्मद कासिम , रामाधार सिंह, कमलेश सिंह, शिक्षकेतर कर्मचारी संघ के अध्यक्ष अशोक सिंह, सचिव शक्ति सिंह उपस्थित रहे।
इस अवसर पर अतिथि शिक्षकों ने सभी छात्रों को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं दी और कहा कि शिक्षक छात्रों को सभी प्रकार के ज्ञान से निपुण करते हैं इसलिए शिक्षक और छात्रों का सबंध परस्पर बना रहना चाहिए।
प्राचार्य समेत अन्य अतिथियों ने किया संबोधित

डॉ चतुर्वेदी ने कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारत भर में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है। ‘गुरु’ का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व होता है।
गुरु-शिष्य का संबंध – गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को अलग अलग रूप-रंग के फूलों से सजाता है।








जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने के लिए प्रेरित करता है। सह प्राचार्य ने कहा कि आज शिक्षा को हर घर तक पहुंचाने के लिए तमाम सरकारी प्रयास किए जा रहे हैं। शिक्षकों को भी वह सम्मान मिलना चाहिए जिसके वे हकदार हैं। एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है।
शिष्य परम्परा आध्यात्मिक प्रज्ञा का नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का सोपान। भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत गुरु (शिक्षक) अपने शिष्य को शिक्षा देता है या कोई विद्या सिखाता है। बाद में वही शिष्य गुरु के रूप में दूसरों को शिक्षा देता है। यही क्रम चलता जाता है। यह परम्परा सनातन धर्म की सभी धाराओं में मिलती है।
गुरु-शिष्य की यह परम्परा ज्ञान के किसी भी क्षेत्र में हो सकती है, जैसे- अध्यात्म, संगीत, कला, वेदाध्ययन, वास्तु आदि। भारतीय संस्कृति में गुरु का बहुत महत्व है। कहीं गुरु को ‘ब्रह्मा-विष्णु-महेश’ कहा गया है तो कहीं ‘गोविन्द’। ‘सिख’ शब्द संस्कृत के ‘शिष्य’ से ही उत्पन्न हुआ है।
ये भी पढ़ें
इस कार्यक्रम में प्रान्त sfd प्रमुख पुष्कर अग्रवाल, जिला संयोजक शुभम, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य आशिका सिंह, नगर मंत्री कुणाल सिंह एवं पूरे जिले भर से लगभग 500 अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता उपस्थित रहें।
कार्यक्रम का संचालन विशाल रॉय ने किया।