हिन्द एक्सप्रेस न्यूज
औरंगाबाद– जिले के देव में स्थित विश्व विख्यात सूर्य मंदिर जहां से छठ पूजा की शुरुआत मानी जाती है, कार्तिक छठ मेले में लगभग 20 लाख से अधिक श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। लोकआस्था का महापर्व छठ मेले का विधिवत उद्घाटन हो गया है। यह उद्घाटन राजस्व मंत्री मदन जायसवाल ने की। मेले का महत्व और श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए प्रशासन ने विशेष तैयारी की है। एक अनुमान के मुताबिक मेले में लगभग 20 लाख श्रद्धालुओं को आने की उम्मीद है। जहाँ सुरक्षा, आवासन से लेकर मेडिकल सुविधाएं तक की व्यवस्था की गई है।
औरंगाबाद जिले के देव में लोकआस्था का महापर्व विश्व प्रसिद्ध छठ पूजा की तैयारी प्रशासन ने कर ली है।
तैयारी के सम्बंध में जिलाधिकारी श्रीकांत शास्त्री ने बताया कि देव सूर्य मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए 10 हजार से अधिक वाहनों के लिए पार्किंग, महिला पुरुष के लिए अलग-अलग शौचालय की व्यवस्था, सुरक्षा के लिए कुंड में एनडीआरएफ की टीम के साथ साथ एनसीसी और स्काउट गाइड के कैडरों की तैनाती की गई है। साथ ही पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती भी की गई है।

वहीं अर्ध्य देने के लिए दूध और घी की व्यवस्था की गई है। सौ जगह पर सीसीटीवी की व्यवस्था के साथ ही तीन ड्रोन कैमरा कुंड के पास निगरानी करता रहेगा।
कुंड के पास ही 10 बेड के साथ एक अस्थाई अस्पताल, नौ जगहों पर आवासन स्थलों को बनाया गया है।
उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन श्रद्धालुओं को हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए हमेशा तत्पर है ऐसे में सभी लोग शांति व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग करें।
मेले का राजस्व मंत्री ने किया उद्घाटन
लोक आस्था का चार दिवसीय छठ पूजा को लेकर भगवान भास्कर की नगरी देव में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगने वाला कार्तिक छठ मेले का मंगलवार को राज्य के राजस्व मंत्री दिलीप जायसवाल ने दीप प्रज्वलित कर उद्घाटन किया। उद्घाटन के बाद राजस्व मंत्री ने देव के विकास के साथ-साथ जिले के विकास को लेकर भी कई चर्चाएं और घोषणाएं की।

मेला में की गई है समुचित व्यवस्था
जिलाधिकारी श्रीकांत शास्त्री ने बताया कि मेला परिसर के कुल 54 स्थलों में बैरिकेडिंग एवं 60 ड्रॉप गेट स्थल का निर्माण कराया जा रहा है। साथ ही साथ दोनों कुंडों पर मजबूत बैरिकेडिंग भी कराया गया है।
मेला परिसर क्षेत्र में पार्किंग के लिए समुचित स्थल का व्यवस्था किया गया है। इसके अतिरिक्त 6 एवं 7 नवंबर को देव मोड एवं माले नगर से बहुआरा मोड़ तक निशुल्क ऑटो एवं बस का सुविधा बहाल की गई है।

आकस्मिकता से निपटने हेतु एनडीआरएफ, एसडीआरएफ की टीम एवं सूर्यकुंड तालाब के पास पर्याप्त मात्रा में लाइफ जैकेट, गोताखोर जाल आदि की व्यवस्था की गई है।
सभी आवासन स्थलों में मेडिकल टीम 24 घंटा की तैनाती है।
मेला परिसर में छठ व्रतियों,यात्रियों एवं पर्यटकों के लिए पर्याप्त चिकित्सा हेतु अस्थाई मेडिकल कैंप एवं सभी आवासन स्थलों में मेडिकल टीम 24 घंटा तैनात की गई है।
मेला अवधि के दौरान आज से बचाव हेतु सूर्यकुंड के पास 02, थाना के पास 02 एवं ब्लाक के पास 01 एवं अवासान स्थलों पर 02 अग्निशमन वाहन 24 घंटा उपलब्ध रहेगी।
दोनों तालाब परिसर एवं अवासन अस्थलों में 24×7 सफाई कार्य चलता रहेगा। इसकी अतिरिक्त मेला क्षेत्र परिसर में भी निरंतर सफाई कार्य कराए जाएंगे।
मेला क्षेत्र में सीसीटीवी कैमरे का भी अधिष्ठापित कराया जाएगा। सूर्य मंदिर के गर्भ गृह, परिसर एवं अर्ध्य स्थलों तथा मेला क्षेत्र के प्रमुख स्थलों पर सीसीटीवी कैमरा अधिष्ठापित कराए गए हैं।

मंदिर का है पौराणिक महत्व
मंदिर को पौराणिकता, शिल्पकला और महत्ता विरासत में मिली है जो अपनी भव्यता के लिए जहां प्रसिद्ध है, वहीं आस्था का बहुत बड़ा केंद्र भी है। इसी कारण प्रतिवर्ष यहां कार्तिक और चैत्र मास में होने वाले छठ में बहुत बड़ा मेला लगता है। मान्यताओं के अनुसार, इस सूर्य मंदिर का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा ने किया है।
मंदिर के बाहर संस्कृत में लिखे श्लोक के अनुसार राजा इला के पुत्र पुरुरवा ऐल ने 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के गुजर जाने के बाद इस मंदिर का निर्माण प्रारंभ करवाया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने पांचवीं से छठी सदी गुप्त काल को इसका निर्माण काल बताया है।
यह मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए विख्यात है। पत्थरों को तराश कर उत्कृष्ट नक्काशी द्वारा मंदिर का निर्माण किया गया है जो शिल्पकला की अनूठी मिसाल है। मंदिर का शिल्प उड़ीसा के विश्वप्रसिद्ध कोणार्क स्थित सूर्य मंदिर से मिलता है। यह मंदिर दो भागों में बना हुआ है। पहला गर्भ गृह, जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर है और इसके ऊपर सोने का कलश है। दूसरा भाग मुख मंडप है, जिसके ऊपर एक पिरामिडनुमा छत और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार पत्थरों का स्तम्भ बना है। मंदिर के प्रांगण में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों स्वरूप उदयांचल, मध्यांचल और अस्तांचल के रूप में विद्यमान हैं। इन्हें कुछ लोग सृष्टि के तीनों रचनाकार ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी कहते हैं।
छठ की शुरुआत
किंवदंतियों के अनुसार राजा ऐल को कुष्ठ रोग हुआ था। जिससे उन्हें मुक्ति नहीं मिल रही थी। वह भटककर जंगल में आए थे और इस तालाब में स्नान करने से उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई थी। तभी वे इस तालाब में स्नान कर भगवान सूर्य की उपासना शुरू कर दिए। साथ ही तालाब में प्राप्त मूर्तियों को स्थापित कर एक मंदिर का निर्माण कराया था।
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